GPS Technology कैसे काम करता है, what is GPS and how it work

GPS technology कैसे काम करता है, what is GPS technology and how it work


GPS technology क्या हैं=

जब आप किसी अनजान जगह पर जाते हैं तो अपनी लोकेशन को ट्रैक करने के लिए और अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए जीपीएस का यूज जरूर करते होंगे लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जीपीएस में ऐसा क्या होता है जो कुछ ही सेकंड में आप की लोकेशन को ट्रैक कर सकता है

 आखिर एक ऑब्जेक्ट  की लोकेशन को ट्रैक करने के लिए यह पूरा जीपीएस सिस्टम किस तरह से काम करता है जानेंगे आज के खास एपिसोड में स्वागत है आप सभी का टेक्नोलोजी ज्ञान के। इस पोस्ट पर और मैं हूं सतीश और मै आपको बताने जा रहा हूं कि आखिर जीपीएस क्या है और जीपीएस काम कैसे करता है 

     जीपीएस का पूरा नाम  ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम है जिसे नवस्टार भी कहा जाता है जीपीएस बेसिकली एक सेटेलाइट रेडियो बेस्ड नविगेशन  सिस्टम है जिसे यू एस गवर्मेंट के द्वारा मिलिट्री पर्पज के लिए1973 में एक प्रोजेक्ट के रूप में  लांच किया गया था इस प्रोजेक्ट के तहत पहली सेटेलाइट 1978 में लांच की गई उस समय जीपीएस का यूज केवल यूएस मिलिट्री के द्वारा ही किया जाता था जीपीएस की हेल्प से यूएस एयरफोर्स दुश्मन देशों के जहाज वायुयानों और अन्य सैन्य उपकरणों की लोकेशन का सटीक अंदाजा लगाकर उन्हें नष्ट करती थी लेकिन सन 1983 में ओरियन एयरलाइंस फ्लाइट 0070 सोवियत संघ की ओर जा रहा था उस समय एयरप्लेन में जीपीएस सिस्टम नहीं हुआ करते थे क्योंकि जीपीएस केवल यूएस मिलिट्री के लिए बनाया गया था ये प्लेन अपने साथ 269 लोगों को लेकर जा रहा था लेकिन गलती से सोवियत संघ के प्रतिबंधित क्षेत्र में चला गया और सोवियत संघ के द्वारा उन्हें मार गिराया गया  इस घटना के बाद उस समय कि अमेरिका के राष्ट्रपति रो रीगर ने फैसला किया कि जी पी एस को  पूरे विश्व में पब्लिकली प्रोवाइड करवाया जाएगा लेकिन वर्ल्ड वाइड के लिए 24 सेटेलाइट की जरूरत पड़ने वाली थी इसलिए जीपीएस को आम लोगों के लिए उपलब्ध करवाने के लिए यू एस गवर्नमेंट के द्वारा पहली सेटेलाइट 14 फरवरी 1989 को और 24वी सेटेलाइट 1994को  लांच की गई 1995 में पहली बार जीपीएस को आम पब्लिक। के लिए ओपन किया गया लेकिन उसकी एक्यूरेसी इतनी परफेक्ट नहीं थी सन 2000 तक यू एस गोरमेंट इस सर्विस को बेहतर बनाने के लिए अनेक प्रयास किए जिसकी वजह से सन 2000 से जीपीएस कवरेज पूरी दुनिया में ठीक तरह से काम करने लगा 1978 से अब तक अमेरिका जीपीएस सिस्टम के लिए 72 सेटेलाइट लांच कर चुका है जिसमें से दो सेटेलाइट। की लॉन्चिंग  असफल रही वर्तमान में 70सेटेलाइट में से 33 जीपीएस सेटेलाइट पृथ्वी की सतह से 20180 किलोमीटर ऊपर अपने ऑर्बिट पर मौजूद है लेकिन 31 सेटेलाइट  ही पूरी तरह से एक्टिव  है।   20000 किलोमीटर ऊपर। से हमारी पूरी पृथ्वी को कवर करने के लिए 24 सेटेलाइट की जरूरत होती है जबकि बाकी बची हुई सेटेलाइट इं 24 सेटेलाइट के बीच के गैप को पूरी करती है

GPS technology काम कैसे करता है(how it work GPS )=

चलिए अब यह समझते हैं कि जीपीएस काम कैसे करता है दरअसल हमारे स्मार्टफोन या किसी भी जीपीएस यूनिट में एक जीपीएस रिसीवर लगा हुआ होता है जो सेटेलाइट से भेजे गए सिग्नल और रिसीव करता है पृथ्वी के ऑर्बिट में चक्कर लगा रही प्रत्येक जीपीएस सेटेलाइट एक निश्चित समय अंतराल के बाद सिग्नल भेजती रहती है इस सिग्नल में उस सेटेलाइट की करंट पोजीशन और सिग्नल भेजे जाने का टाइम निहित होता हैटाइम की सटीक गणना के लिए प्रत्येक सेटेलाइट में एटॉमिक क्लॉक का यूज किया जाता है ऑटोमेटिक लॉक ऐसी क्लॉक होती है जो लाखों करोड़ों सालों तक भी सही समय बता सकती है इन क्लॉक  में किसी भी तरह की गड़बड़ी होने की संभावना ना के बराबर रहती है जब इन सेटेलाइट के द्वारा भेजे गए सिग्नल पृथ्वी पर मौजूद किसी जीपीएस रिसीवर के संपर्क में आते हैं तो रिसीवर इन संकेतों को रिसीव करके उन्हें रीड करता है जैसे ही जीपीएस रिसीवर को यह सिग्नल प्राप्त होते हैं तो रिसीवर सिग्नल प्राप्त होने के टाइम में से सिग्नल भेजे जाने के टाइम को घटाकर यह पता कर लेता है कि सिग्नल भेजने वाली सेटेलाइट उस से कितनी दूरी पर और किस लोकेशन पर मौजूद है अगर जीपीएस रिसीवर को 3 सेटेलाइट से सिग्नल मिल जाए तो जीपीएस रिसीवर अपनी लोकेशन को निर्धारित कर सकता हैअपनी लोकेशन निर्धारण करने की इस पूरी प्रोसेस को ट्राई लिटरेशन कहा जाता है और यह कुछ इस तरह से संपन्न होती है

              अल्बर्ट आइंस्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी के अनुसार किसी प्रोजेक्ट के लिए समय ज्यादा तेजी से गति करेगा यदि वह किसी में ग्रेविटी के सोर्स से दूर होता जाएगा पृथ्वी से 20000 किलोमीटर ऊपर ऑर्बिट पर मौजूद सेटेलाइट भी पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बहुत दूर है इसलिए उनमें मौजूद एटॉमिक ग्लोब पृथ्वी पर मौजूद ग्लोब से 38 माइक्रो सेकंड फास्ट होती है इसलिए टाइम  सटीक अंदाजे के लिए 4th  सेटेलाइट की भी जरूरत पड़ती है जीपीएस सेटेलाइट के ऑर्बिट  को किस तरह से बनाया गया है कि पृथ्वी के अधिकतर स्थान पर  हर समय कम से  कम छह सैटलाइट की कवरेज में रहे ऐसे में जब कोई भी जीपीएस रिसीवर 4 या उससे अधिक सेटेलाइट से सिग्नल प्राप्त करने में सफल हो जाता है तो हमें हमारी करंट लोकेशन पता लग जाती है एक नॉर्मल जीपीएस डिवाइस जो कुछ समय से उपयोग में नहीं लिया गया है

               अपनी लोकेशन शो करने में 10 से 15 मिनट का समय ले लेता है लेकिन अगर हम किसी स्मार्ट फोन में जीपीएस का यूज करते हैं तो हमें कुछ ही सेकंड में हमारी लोकेशन पता लग जाती है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मोबाइल में   A जीपीएस या असिस्टेंट जीपीएस का यूज किया जाता है यह A जीपीएस जीपीएस का ही एक रूप है लेकिन यह इंटरनेट कनेक्टिविटी और असिस्टेंट सरवर का यूज करके अपनी लोकेशन का पता जल्दी लगा लेता है जब भी हम स्मार्ट फोन में जीपीएस और डाटा कनेक्शन ऑन करते हैं तो हमारे स्मार्टफोन में लगा हुआ जीपीएस रिसीवर असिस्टेंट सर्वर से संपर्क करता है असिस्टेंट सर्वर पहले से ही उस एरिया में विजिबल सेटेलाइट से आने वाले सिग्नल को स्टोर करके रखता है जैसे रिसीवर सर्वर से संपर्क करता है तो सर्वर रिसीवर की सिग्नल को ट्रांसफर कर देता और रिसीवर उन सिग्नल कोर रीड करके अपनी लोकेशन को निर्धारित कर लेता है A जीपीएस का फायदा यह होता है कि जीपीएस रिसीवर को सेटेलाइट से आने वाले सिग्नल का इंतजार नहीं करना पड़ता ऐसे में जहां एक साधारण जीपीएस यूनिट लोकेशन का पता करने में 10 से 15 मिनट ले लेती है तो वहीं एक यह Aजीपीएस डिवाइस से यह प्रोसेस कुछ ही सेकेंड में पूरी हो जाती है आज के समय में जीपीएस के अलावा केवल क्लोनास ही एक ऐसा नेविगेशन सिस्टम है जो वर्ल्ड वाइड अपनी सेवाएं प्रदान करता है भारत के द्वारा भी खुद का नविगशन सिस्टम नेविक डेवलप किया जा चुका है

भारत में GPS technology कैसे आया =

दरअसल 1999में भारत और पाकिस्तान के मध्य कारगिल का युद्ध  हो रहा था तो भारत नेअमेरिका से जीपीएस सिस्टम को सेना के लेवल पर यूज करने के लिए हेल्प मांगी थी लेकिन यू एस ने इसके लिए साफ मना कर दिया 

क्योंकि अमेरिका नहीं चाहता  था कि पाकिस्तान के साथ उसके रिश्ते खराब हो इस घटना के बाद भारत ने अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम नेविक्क  डिवेलप किया फीलाल यह सिस्टम केवल इंडिया में ही उपलब्ध है और बॉर्डर एरिया  से 15 किलोमीटर दूर तक कवरेज दे सकता है वर्तमान में निरीक्षण में नेविक सिस्टम में सात सेटेलाइट है जिन्हें पृथ्वी से 36000 किलोमीटर ऊपर स्थापित किया गया है आने वाले समय में भारत भी अपने नेविगेशन सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए बहुत से नए प्रोजेक्ट पर काम करने वाला है 

                                       तो बस आज के लिए इतना ही आशा करता हूं आपको यह पोस्ट पसंद आया होगा मिलते हैं अगले  नए पोस्ट  के साथ तब तक के लिए खुश रहें मस्त रहें हंसते रहें भगवान करे आप सभी का दिन शुभ हो
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